Tuesday, July 10, 2018
Monday, July 9, 2018
Thursday, July 5, 2018
दिल को तोड़ के मेरे वो ऐसे अन्जान बैठा है
लगता है जैसे कोई मुर्दा बेजान बैठा है
गली मे आकर मेरी मुझको ही बदनाम किये बैठा है
लबों पर अब भी देखो मेरा ही नाम लिए बैठा है
मुझसे पहले कितनो को वो बर्बाद किये बैठा है
मुझे लगता है वो अपनी नियत ख़राब किये बैठा है
ए -आकिब कहीं चिराग़ है, कहीं वो किताब लिए बैठा है
मुझे लगता है वो कई आफ़ताब लिए बैठा है |
Wednesday, July 4, 2018
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ग़ज़ल-रहमान फ़ारिस, नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है
नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है सौ पेश-ए-यार निगाहें झुकाना बनता है वो लाख बे-ख़बर-ओ-बे-वफ़ा सही लेकिन त...
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Tera chup rahna mere ze han mai kya baith gya. Itni aawaze tujhe di ke gala baith gya. Yun Nhai hai Ke Faqat Mai Hi use chahata huu....