Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ग़ज़ल-रहमान फ़ारिस, नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है
नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है सौ पेश-ए-यार निगाहें झुकाना बनता है वो लाख बे-ख़बर-ओ-बे-वफ़ा सही लेकिन त...
-
हक़ीक़त में अपना मैं तुमको बनाकर मैं ले जाऊंगा सबसे तुमको छुपाकर के मेरी रियासत हो तुम..... बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम.... ये माना है मैंने क...
-
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा मगर वो आँखें हमारी कहाँ स...
-
Tera chup rahna mere ze han mai kya baith gya. Itni aawaze tujhe di ke gala baith gya. Yun Nhai hai Ke Faqat Mai Hi use chahata huu....
Khoobsurat
ReplyDeleteKhoobsurat
ReplyDelete