Thursday, July 5, 2018

जो आ गये हो सामने तो अपना पता भी बताते जाओ
जो की थी मैंने ख़ता  वो ख़ता भी बताते जाओ
ना - उम्मीद ना हुआ था मैं तेरे जाने के ग़म से
जो देनी है अब सज़ा वो सज़ा भी सुनाते जाओ

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ग़ज़ल-रहमान फ़ारिस, नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है

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