Wednesday, January 2, 2019

गज़ल क्या होती है ? मेरे ख्याल से शायद किसी को ये बताने की जरूरत नहीं | जो लोग पढ़े लिखें है वो अपने स्कूल के समय से गज़लशब्द से वाकिफ होते हैं व कालेज पहुँचने तक बहुत से स्कूल में पढ़ने वाले विधार्थी गज़ल लिखना शुरू भी कर देते हैं | इसकी जानकारी हिंदी व पंजाबी के अपनी मनपसंद विषय रखने वाले विधार्थीओं के लिए (+2, BA व MA के विधार्थीओं )के लिए भी जानकारी होना महत्वपूर्ण है | गज़ल लिखना क्या कठिन है ? ये एक अहसास है मन के भावों को कागज़ पर उकेरित करने का | बहुत से नवयुवक से लेकर पुराने धुरंधर लेखक भी गज़ल लिखते हैं | लेकिन ! यदि किसी ये कहा जाए खासकर नवयुवा गज़ल लेखक से कि क्या आपने अपनी गज़ल को बहर में लिखा है तो उस नवयुवा लेखक के चेहरे पर ? प्रशन चिन्ह जैसे भाव बन जाते हैं | यहाँ पर इस तरह की बात कहना किसी का मज़ाक उड़ाने के लिए नहीं है बल्कि मेरा आशय ये है कि यदि आप गज़ल के अर्थपूर्ण अंदाज़ में उसकी प्रस्तुति करना चाहते हैं तो आपका आपकी गज़ल का बहर में होना जरूरी है | बहर क्या होती है, कैसी होती है, कोई शे’र बहर में है या नहीं है –ये सब ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर ग़ज़ल लिखने वाले अधिकांश नए लोग ढूंढते रह जाते हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता। यदि आप भी चाहते हैं कि आप का नाम भी उसी तरह से मशहूर कवि, लेखकों की फेहरिस्त में शामिल हो तो और भी जरूरी हो जाता है कि आप द्वारा लिखी गई गज़ल बहर में हो |
इसी विषय पर ललित कुमार जी ने मई-2011 को एक लेख ग़ज़ल से जुड़ा एक नया शब्द: ग़नुक लिखा था व गज़ल के बहर में होना, पर विस्तार से चर्चा की थी व इस लेख में अपने विचार पेश किये थे कि यदि कोई गज़ल के गंभीर प्रारूप को नहीं सीखना चाहता या इस की गहराई में नहीं जाना चाहता वो अपनी तुकबंदी को, अपने मन के भावों को, या कुछ शे'रों के समूह को ग़नुक नाम दे सकते हैं | उन्होंने जब इस लेख को लिखा था तब तक तो टिप्स हिंदी में ब्लॉग पर इस तरह का कोई लेख प्रकाशित ही नहीं होता था | लेकिन उन के ये शब्द जो मेरे में घर कर गए कि इस बहर पर भी एक लेख विस्तार से लिखा जाना चाहिये | क्योकि मैं ठहरा एक नया ब्लॉगर, उस पर तुरुप का इक्का कि सिर्फ टैक्नीक पर लिखने वाला तो भला बहर पर लेख कैसे लिख पाता | लेकिन ! मन में ये भावना भी घर कर गई कि इस बहर पर के लेख तो जरूर लिखा जाना चाहिए | लेकिन ये ख्याल हवा हो गए | तीन से चार महीने यूं ही बीत गए |
     ग़ज़ल लिखना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए प्रतिभा के अलावा काफ़ी अभ्यास की ज़रूरत होती है। कई लोग तो इस विधा के सबसे आसान नियमों, जैसे कि मतला, मक़्ता, रदीफ़ काफ़िया इत्यादि तक को भी नहीं समझ पाते। इन नियमों का पालन करना भी अभ्यास से ही आता है। इस सबके बावज़ूद किसी भी तरह की तुकबन्दी करने वाले लोगों के बीच ग़ज़ल का प्रारूप काफ़ी लोकप्रिय है। आपको सस्ते शे’र हर जगह मिल जाते हैं जो मात्र तुकबंदी पर आधारित होते हैं। (इस पैराग्राफ के ये पंक्तियाँ ललित कुमार जी की उसी पोस्ट से ज्यों के त्यों ली गई हैं )

     इसके इलावा जो लेखक अपनी शायरी को गंभीरता से लेते है या मनन करते है वो इन बहर के नियमों का पालन जरूर करते हैं | यदि आप सिर्फ टाईमपास शायरी (गज़ल) लिखना चाहते हैं तो उसके लिए बहर को जानना जरूरी नहीं | लेकिन जो इस गंभीरता से लेना चाहते हैं उनके लिए बहर का ज्ञान होना जरूरी है |
     अब बहुत से लोगों (नवागुन्तक लेखक ) के मन में ये जानने के जिज्ञासा तो जरूर होगी की ये आखिर बहर है क्या ? बहर आम भाषा में गज़ल को मापने का एक मीटर होता है जिसमें एक शे'र के दो पंक्तियों के बीच में यानि कि पहली व दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त शब्दों में मात्राओं का प्रयोग बराबर मात्रा में हो को कहा जाता है | इसे कुछ इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जैसे किसी भी फिल्म में किसी भी गाने को एक लय के साथ गाया जाता है तो उस गाने को गाने से पहले एक लय में लिखा जाता है तभी तो उस गाने एक लय में गाया जा सकता है | यदि शब्द के लय में न हों तो क्या कोई भी गाना अपनी लय पकड़ पायेगा | मेरे इस ख्याल से सभी सहमत होंगे | इसी तरह से गज़ल को एक लय में प्रस्तुत करने के लिए बहर शब्द का प्रयोग होता है |
     फिर एक दिन मेरे करीबी पंजाबी के नामवर शायर श्री दियाल सिंह जी प्यासा से मुलाकात हुई तो मन में छुपा वही जिन्न बाहर निकल आया | मैंने अपने विचारों से उन्हें अवगत करवाया कि मैं बहर पर एक लेख लिखना चाहता हूँ व मुझे आपकी सहायता चाहिए वो भी पूरे विस्तार से इस लेख को लिखने के लिए | मुझसे करीबी रिश्ता होने के कारण उन्होंने इस विषय पर विस्तार से जानकारी देने की स्वीकृति दे दी | उनकी स्वीकृति के पश्चात् भी काफी समय गुज़र गया यदि उनके पास समय होता तो मेरे पास समय का आभाव होता | मेरे पास समय होता तो उनके पास समय का अभाव होता | लेकिन फिर भी इस लेख को लिखने की चाहत आखिर रंग ले ही आई | उनसे आखिरकार रविवार ३ दिसंबर २०११ को एक घंटा मुलाकात हुई व उस मुलाकात में बहुत कुछ जानने को मौका मिला | उनसे हुई मुलाकात में बहर विषय पर चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने ने मुझे इस विषय पर विस्तार से जानकारी सभी पाठकों तक उपलब्ध करवाने की इच्छा जाहिर की | जो जाना आपके लिए पेश है |
     बहर को समझने के लिए इस विषय पर मेरे ख्याल से सबसे पहले छंदशाश्तर की जानकारी पाना सभी के लिए फायदेमंद साबित होगा |

सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि :- पिंगल क्या होता है ?

     जो ये नहीं जानते उनके लिए ये जान लेना जरूरी है कि सभी भाषाओँ की जननी संस्कृत भाषा में पिंगल नाम के एक ऋषि हुआ करते थे | इन्होने ही कविताओं में छंदशाश्तर का ज्ञान दिया | कविताओं में छंदशाश्तर के प्रयोग को पिंगल ऋषि के नाम पर ही पिंगल कहा जाने लगा | हिंदी में इसे छंदशाश्तर, उर्दू में इसे अरूज़ कहा जाता है व अंग्रेजी में इसे Prosody कहा जाता है |

पिंगल बोलीयां

1. मात्रा        2. गुरु   :     3. लघु   :    4. वर्ण
5. तुकांग      6. तुकांत     7. काफ़िया      8. रदीफ़ 

     जो व्यक्ति बहर के बारे में जानना चाहते हैं उनके लिए इन उपरोक्त आठ शब्दों का गहन ज्ञान होना जरूरी है | इनके क्या मतलब हैं इनके बारे में जाने बिना बहर के बारे में ज्ञान (जानकारी) पाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती | आइये सबसे पहले इन शब्दों के अर्थ जानने की कोशिश करते हैं |
1. मात्रा : मन के भावों को प्रकट करने के लिए हम कुछ शब्दों का प्रयोग करते हैं | शब्दों से ही वाक्य बनते हैं | अलग-अलग भाषाओँ के लिए अलग-अलग शब्दों कर प्रयोग किया जाता हैं | इस को लिपि कहते हैं | जैसे हिंदी संस्कृत के लिए देवनागरी व पंजाबी के लिय गुरुमुखी लिपि का प्रयोग किया जाता हैं | हर उस शब्द का जब उच्चारण किया जाता है तो उस शब्द के उच्चारण में कुछ समय लगता है | इस समय को संगीत की जुबां में मात्रा कहा जाता है | मात्राएं दो प्रकार की होती हैं | लघु व गुरु | सभी शब्दों को लघु कहा जाता है |

2. लघु : जिस शब्द के उच्चारण में कम समय लगे उसे एक आवाज (एक मात्रा) की रूप में जाना जाता है या ये भी समझ सकते हैं कि श्रवण किया जा सकता है | इस को प्रकट करने के लिए अंग्रेजी के "I"शब्द का प्रयोग किया जाता है |

3. गुरु : जिस शब्द के उच्चारण में दोगुणा समय लगे उसे गुरु कहते हैं | इस गुरु शब्द को समझने के लिए अंग्रेजी के S शब्द का प्रयोग किया जाता है | इसे दो बार गिना जाता है एक बार S का मतलब है दो मात्राएँ | जैसे सा अक्षर में एक स की मात्रा है और स के साथ आ की मात्रा है इस प्रकार सा अक्षर में दो मात्राओं को गिना जाता है |

इन उपरोक्त दोनों शब्दों को समझने के लिए हम एक उदाहरण का प्रयोग करते हैं जैसे :-
फासला
फाला
SIS
212=5


उपरोक्त शब्द में आप देखेंगे कि फ से आ की मात्रा का प्रयोग हुआ है |
इसी प्रकार स से की व ला से भी  की मात्रा का प्रयोग हुआ हुआ है |
तो इसे इस प्रकार से समझने का प्रयत्न करेंगे SIS आपने देखा कि इस फासला शब्द में एक S फिर I फिर S का प्रयोग हुआ है | जैसा कि नंबर एक पर गुरु के लिए उच्चारण में दोगुने समय का प्रयोग हुआ है लिखा है | इस प्रकार तीन SIS (2+1+2) का मतलब हुआ 5 मात्राओं का प्रयोग हुआ |

यहाँ पर ये जान लेना नितांत आवश्यक है कि मात्राओं को गिनने के लिए छोटी इ की मात्रा,  की मात्रा व बिंदी की मात्रा को इसमें नहीं गिना जाता |

इसे निम्न उदाहरण से स्पष्ट करने की चेष्टा की है | कृपया ध्यान दें निम्न पंजाबी में लिखी गई पंक्तिओं में मात्राओं को समझने के लिए इन को ध्यान से पढ़ें :-

रास गुणा दी सांभ के, बन जा ऊह इन्सान |
जिसदे निघे प्यार नूं, लोचे सरब जहान ||

अब आप देखें कि इन पंक्तिओं में कैसे गुरु व लघु का इस्तेमाल हुआ है | इसे आप निम्न टेबल में देख सकते हैं
रासगुणांदीसांभके,बनजाऊहइन्सान |
SIISSSISIISIIIISI
2+11+222+121+121+11+1+2+113+11=24
जिसदेनिघेप्यारनूं,लोचेसरबजहान ||
IISISISISSSIIIISI
1+1+21+21+2+122+21+1+11+2+113+11=24


4. वर्ण : हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है । जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि । वर्ण यानि कि अक्षर | जो व्यक्ति पिंगल के बारे में जानते है वो जानते है कि पिंगल का अर्थ क्या है जो नहीं जानते उनके लिए ये जानना जरूरी हैं कि पिंगल की भाषा में अक्षर को वर्ण के नाम से जाना व पढ़ा जाता है |

वर्णमाला 

1. स्वर     २.व्यंजन 

स्वर : जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं:

1. ह्रस्व स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।

2. दीर्घ स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।

3. प्लुत स्वर :जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है।

व्यंजन :

जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में ३३ हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं:

1. स्पर्श      2. अंतःस्थ     3. ऊष्म

1. स्पर्श : इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे:-

कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्
चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्)
तवर्ग- त् थ् द् ध् न्
पवर्ग- प् फ् ब् भ् म् 


2. अंतःस्थ : ये निम्नलिखित चार हैं :-

य् र् ल् व् 

3. ऊष्म : ये निम्नलिखित चार हैं :-

श् ष् स् ह्

सयुंक्त व्यंजन
वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं।

जैसे-क्ष=क्+ष अक्षर,
ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान,
त्र=त्+र
नक्षत्र कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।

अनुस्वार

इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।

विसर्ग

इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः, प्राय: ।

चंद्रबिंदु

जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। हिन्दी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।

हलंत

जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां।

वर्णों के उच्चारण-स्थान

मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
उच्चारण स्थान तालिका
क्रमवर्णउच्चारणश्रेणी
1.अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह्विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भागकंठस्थ
2.इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् शतालु और जीभतालव्य
3.ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष्मूर्धा और जीभमूर्धन्य
4.त् थ् द् ध् न् ल् स्दाँत और जीभदंत्य
5.उ ऊ प् फ् ब् भ् मदोनों होंठओष्ठ्य
6.ए ऐकंठ तालु और जीभकंठतालव्य
7.ओ औदाँत जीभ और होंठकंठोष्ठ्य
8.व्दाँत जीभ और होंठदंतोष्
ये जानकारी आप सभी के लिए बहर को जानने के लिए अति जरूरी है | वर्ण सबंधी जानकारी विकिपीडिया से ली गई है |
5. तुकांग : किसी भी गज़ल की किसी भी एक पंक्ति में जहां पर उस पंक्ति के बीच में कोमा का प्रयोग किया जाता है उस हिस्से को तुकांग कहते हैं | इस के गज़ल कहने के अंदाज़ में काफी अहमियत है | निम्न पंक्ति में आप इसे देख सकते हैं कि इस पंक्ति में कोमा का प्रयोग सांभ के ,के बाद हुआ है :-

रास गुणा दी सांभ के, बन जा ऊह इन्सान |
6. तुकांत :तुकांत यानि कि तुक का अंत | किसी भी गज़ल की पंक्ति के आखिर में प्रयोग होने वाले चिन्ह जिस से ये आभास हो कि इस तुक का यहाँ पर अंत है, को तुकांत कहा जाता है | यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात ये है कि किसी भी गज़ल की दोनों पंक्तिओं का तुकांत जरूर मिलता है | उदाहरण के लिए निम्न लाइन पर गौर किया जाए :

रास गुणा दी सांभ के, बन जा ऊह इन्सान |
जिसदे निघे प्यार नूं, लोचे सरब जहान ||

     अब आप उपरोक्त पहली लाइन के अंत में देखें जहाँ पर इन्सान लिखा है व दूसरी लाइन के अंत में जहाँ पर जहान लिखा है | वहाँ पर इन दोनों शब्दों के अंत में विराम चिन्ह का प्रयोग किया गया है, इसी को तुकांत कहते हैं (जिसका मतलब है तुक का अंत)| यहाँ पर एक और बात जिकरयोग है कि किन्हीं भी दो पंक्तिओं का तुकांत हमेशा मिलता है जैसे उपरोक्त दोनों पंक्तिओं में इन्सान और जहान | इस में एक और बात ध्यान देने योग्य बात है कि गज़ल के किसी भी दो लाइनों के बीच तुकांग मेल नहीं खाता | आप उपरोक्त इन दोनों पंक्तिओं में यदि ध्यानपूर्वक देखेंगे तप पाएंगे की इन पंक्तिओं में के व नूं आपस में नही मिलते |
7. काफ़िया : मेरे ख्याल से काफ़िया पर अलग से एक लेख होना चाहिए | जल्द ही काफ़िया को समझने के लिए अलग से एक लेख की प्रस्तुति की जायेगी |


4. वर्ण : हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है । जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि । वर्ण यानि कि अक्षर | जो व्यक्ति पिंगल के बारे में जानते है वो जानते है कि पिंगल का अर्थ क्या है जो नहीं जानते उनके लिए ये जानना जरूरी हैं कि पिंगल की भाषा में अक्षर को वर्ण के नाम से जाना व पढ़ा जाता है |

वर्णमाला 

1. स्वर     २.व्यंजन 

स्वर : जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं:

1. ह्रस्व स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।

2. दीर्घ स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।

3. प्लुत स्वर :जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है।

व्यंजन :

जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में ३३ हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं:

1. स्पर्श      2. अंतःस्थ     3. ऊष्म

1. स्पर्श : इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे:-

कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्
चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्)
तवर्ग- त् थ् द् ध् न्
पवर्ग- प् फ् ब् भ् म् 


2. अंतःस्थ : ये निम्नलिखित चार हैं :-

य् र् ल् व् 

3. ऊष्म : ये निम्नलिखित चार हैं :-

श् ष् स् ह्

सयुंक्त व्यंजन
वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं।

जैसे-क्ष=क्+ष अक्षर,
ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान,
त्र=त्+र
नक्षत्र कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।

अनुस्वार

इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।

विसर्ग

इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः, प्राय: ।

चंद्रबिंदु

जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। हिन्दी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।

हलंत

जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां।

वर्णों के उच्चारण-स्थान

मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
उच्चारण स्थान तालिका
क्रमवर्णउच्चारणश्रेणी
1.अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह्विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भागकंठस्थ
2.इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् शतालु और जीभतालव्य
3.ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष्मूर्धा और जीभमूर्धन्य
4.त् थ् द् ध् न् ल् स्दाँत और जीभदंत्य
5.उ ऊ प् फ् ब् भ् मदोनों होंठओष्ठ्य
6.ए ऐकंठ तालु और जीभकंठतालव्य
7.ओ औदाँत जीभ और होंठकंठोष्ठ्य
8.व्दाँत जीभ और होंठदंतोष्
ये जानकारी आप सभी के लिए बहर को जानने के लिए अति जरूरी है | वर्ण सबंधी जानकारी विकिपीडिया से ली गई है |
5. तुकांग : किसी भी गज़ल की किसी भी एक पंक्ति में जहां पर उस पंक्ति के बीच में कोमा का प्रयोग किया जाता है उस हिस्से को तुकांग कहते हैं | इस के गज़ल कहने के अंदाज़ में काफी अहमियत है | निम्न पंक्ति में आप इसे देख सकते हैं कि इस पंक्ति में कोमा का प्रयोग सांभ के ,के बाद हुआ है :-

रास गुणा दी सांभ के, बन जा ऊह इन्सान |
6. तुकांत :तुकांत यानि कि तुक का अंत | किसी भी गज़ल की पंक्ति के आखिर में प्रयोग होने वाले चिन्ह जिस से ये आभास हो कि इस तुक का यहाँ पर अंत है, को तुकांत कहा जाता है | यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात ये है कि किसी भी गज़ल की दोनों पंक्तिओं का तुकांत जरूर मिलता है | उदाहरण के लिए निम्न लाइन पर गौर किया जाए :

रास गुणा दी सांभ के, बन जा ऊह इन्सान |
जिसदे निघे प्यार नूं, लोचे सरब जहान ||

     अब आप उपरोक्त पहली लाइन के अंत में देखें जहाँ पर इन्सान लिखा है व दूसरी लाइन के अंत में जहाँ पर जहान लिखा है | वहाँ पर इन दोनों शब्दों के अंत में विराम चिन्ह का प्रयोग किया गया है, इसी को तुकांत कहते हैं (जिसका मतलब है तुक का अंत)| यहाँ पर एक और बात जिकरयोग है कि किन्हीं भी दो पंक्तिओं का तुकांत हमेशा मिलता है जैसे उपरोक्त दोनों पंक्तिओं में इन्सान और जहान | इस में एक और बात ध्यान देने योग्य बात है कि गज़ल के किसी भी दो लाइनों के बीच तुकांग मेल नहीं खाता | आप उपरोक्त इन दोनों पंक्तिओं में यदि ध्यानपूर्वक देखेंगे तप पाएंगे की इन पंक्तिओं में के व नूं आपस में नही मिलते |



उत्तर : ग़ज़ल के प्रारंभिक शे'र को मतला कहते हैं | मतला के दोनों मिसरों में तुक एक जैसी आती है | मतला का अर्थ है उदय | उर्दू ग़ज़ल के नियमानुसार ग़ज़ल में मतला और मक़ता का होना अनिवार्य है वरना ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है । लेकिन आज-कल नवागुन्तक ग़ज़लकार मकता के परम्परागत नियम को नहीं मानते है या ऐसा भी हो सकता है कि वो इस नियम की गहराई में जाना नहीं चाहते व इसके बिना ही ग़ज़ल कहते हैं । कुछेक कवि मतला के बगैर भी ग़ज़ल लिखते हैं लेकिन बात नहीं बनती है; क्योंकि गज़ल में मकता हो या न हो, मतला का होना लाज़मी है जैसे गीत में मुखड़ा । आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि यदि किसी गीत में मुखड़ा न हो तो आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं गीत कैसा लगेगा । गायक को भी तो सुर बाँधने के लिए गीत के मुखड़े की भाँति मतला की आवश्यकता पड़ती ही है। ग़ज़ल में दो मतले हों तो दूसरे मतले को 'हुस्नेमतला' कहा जाता है। मत्‍ले के शेर में दोनों पंक्तियों में काफिया ओर रदीफ़ आते हैं । यहाँ पर एक और बात जिकरयोग है कि मत्‍ले के शेर से ही ये निर्धारण किया जाता है या ये निर्धारित होता है कि किस मात्रिक-क्रम (बहर) का पूरी ग़ज़ल में पालन किया जायेगा या ग़ज़ल कही जायेगी |

'हुस्नेमतला' : किसी ग़ज़ल में आरंभिक मत्‍ला आने के बाद यदि और कोई मत्‍ला आये तो उसे हुस्‍न-ए-मत्‍ला कहते हैं ।

मत्ला-ए-सानी :एक से अधिक मत्‍ला आने पर बाद वाला मत्‍ला यदि पिछले मत्‍ले की बात को पुष्‍ट अथवा और स्‍पष्‍ट करता हो तो वह मत्‍ला-ए-सानी कहलाता है।
प्रश्न : मकता क्या होता है ?

उत्तर : ग़ज़ल के अंतिम शे'र को मकता कहते हैं । मकता का अर्थ है अस्त। उर्दू ग़ज़ल के नियमानुसार ग़ज़ल में मतला और मक़ता का होना अनिवार्य है वरना ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है। मकता में कवि का नाम या उपनाम रहता है । नाम या उपनाम से भाव उस शब्द से जिस नाम से उस शायर को जाना जाता है |

जैसे :-पंजाबी के नामवर शायर श्री दियाल सिंह 'प्यासा', यहाँ पर प्यासामकता कहलायेगा |
एक और उदाहरण : आर.पी.शर्मा 'महर्षि', यहाँ पर 'महर्षि' मकता कहलायेगा |
इसे एक और उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे :- जैसे कि आप सभी जानते हैं कि मेरा नाम विनीत नागपाल है | बहुत से जानने वाले मुझे सिर्फ नागपाल जी के नाम से संबोधन देते हैं | मैंने अपने नाम का इस्तेमाल सिर्फ आपको समझाने के लिए किया है | असल में गज़ल लिखने या कहने वाले ज्यादातर शायर अपने नाम के साथ उपनाम का प्रयोग जरूर-जरूर करते हैं | उदाहरण के तौर पर गौर फरमाएं कि मिर्ज़ा 'ग़ालिब', आज के स्तंभ डॉ. रूप चंद शास्त्री 'मयंक', यहाँ पर 'ग़ालिब' 'मयंक' इन नामवर शायर के उपनाम हैं |
प्रश्न : शे,र किसे कहते हैं ?

उत्तर :दो पंक्तिओं या दो लाइनों या दो मिसरों या पंजाबी में (ਦੋ ਸਤਰਾਂ) के जोड़ को या इसे कुछ इस तरह भी समझ सकते हैं कि किन्ही दो पंक्तिओं को शे,र कहा जाता है | शेर की प्रत्‍येक पंक्ति को ‘मिसरा’ कहा जाता है। शेर की पहली पंक्ति को मिसरा-ए-उला कहते हैं और दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं| शेर के दोनों मिसरे निर्धारित मात्रिक-क्रम की दृष्टि से एक से होते हैं । इन्हीं मिसरों को मात्रिक-क्रम के आधार पर ही किसी न किसी बहर से निर्धारित किया जाता है |
प्रश्न : तक्‍तीअ क्या है या तक्‍तीअ किस कहते हैं या तक्‍तीअ क्या होती है ? उत्तर : ग़ज़ल के शेर को जॉंचने के लिये तक्‍तीअ की जाती है जिसमें शेर की प्रत्‍येक पंक्ति के अक्षरों को बहर के मात्रिक-क्रम के साथ रखकर देखा जाता है कि पंक्ति मात्रिक-क्रमानुसार शुद्ध है। इसी (तकतीअ पद्धति) से यह भी तय होता है कि कहीं दीर्घ को गिराकर हृस्‍व के रूप में या हृस्‍व को उठाकर दीर्घ के रूप में पढ़ने की आवश्‍यकता है अथवा नहीं। विवादास्‍पद स्थितियों से बचने के लिये अच्‍छा यही रहता है कि किसी भी ग़ज़ल को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करने के पहले तक्‍तीअ अवश्‍य कर ली जाये ताकि जब कोई गज़ल के फनकार आप द्वारा कही गज़ल की परख करें तो उन के मापदंड पर खरी उतरे |

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