Wednesday, May 1, 2019

बहुत ख़ूबसूरत हो तुम,नज़्म-आक़िब जावेद , ये नज़्म ताहिर फराज़ साहब की ज़मीन पे है

हक़ीक़त में अपना मैं तुमको बनाकर
मैं ले जाऊंगा सबसे तुमको छुपाकर
के मेरी रियासत हो तुम.....
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम....


ये माना है मैंने के तू है क़रीना
तेरे जैसी सूरत न होगी हसीना
के जबसे है देखा तुझे मैंने पागल
बरसते है मुझपे ख़यालों के बादल
जो देखे तुम्हे तुमको माँगे दुआ मे
है जादू तुम्हारी हर इक इक अदा में
खुदा की इनायत हो तुम.....
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम.......


क्या तेरी अदाएं क्या तेरा बदन है
बस तेरी सूरत इस दिल में दफ़न है
तुम्हे जबसे देखा तो पागल हुआ हुँ
तुम्हारी अदा से मै घायल हुआ हूँ
के तेरी नजर मे मै काबिल नही हूँ
मगर मै किसी को भी हासिल नही हूँ
के बस मेरी आदत हो तुम......
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम.....


वो होंठों की सुर्खी वो सूरत सुहानी
नज़र न लगे हाए ये तेरी जवानी
के सूरत को अपनी छिपाया करो तुम
ज़माने से खुद को बचाया करो तुम
है भोली सी सूरत और आँखें गुलाबी
जो देखे तुम्हे वो हो जाये  शराबी
के ऐसी हक़ीक़त हो तुम.....
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम......
-आक़िब जावेद

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