Thursday, January 3, 2019

Introduction of The Great Huzur A'la Hazrat

आला हजरत तहरीर फरमातें हैं… 
उन्‍हें जाना, उन्‍हें माना, न रखा गैर से काम
लिल्‍लाह हील-हम्‍द मैं दुनिया से मुसलमान गया 
ला-वरब्‍बील अर्श जिसको जो मिला उनसे मिला
बटती हैं कौनैन में नेमत रसुलअल्‍लाह कि 
वोह जहान्‍नम में गया जो उनसे मुस्‍तग्‍नी हुवा
है खलिलुल्‍लाह को हाजत रसुलअल्‍लाह कि 
और 
या रसुलअल्‍लाह (स-अ-व-स)
तेरी नस्‍ले पाक में हैं बच्‍चा बच्‍चा नुर का
तु है ऐन-ए-नुर तेरा सब घराना नुर का 
इमाम अहलेसुन्‍नत, मुजद्दीद-ए-दीन व मिल्‍लत, अश्‍शाह अलमुफ्ती, अलहाफिज, अलकारी आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ कादरी फ़ाज़िले बरेलवी रदीअल्‍लाहुअन्‍हु ऐसी शख्सियत का नाम-ए-नामी है जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी खि़दमते दीन और मज़हब-ए-इस्लाम की इशाअत में गुज़ारी और जिन की पूरी ज़िन्दगी इश्क़े रसूल में सरशार रही। आप पैकरे इश्‍के थ‍े, पुरी जिंदगी नबी कि अजमत व शान पर निसार करदी और लिख्‍ते हैं … 
अल्‍लाह कि सर-ता-ब-कदम शान हैं ये
इंसा नही इंसान, वोह इंसान हैं ये
कुर्आन तो इमान बताता हैं इन्‍हें
इमान ये कहता हैं मेरी जान हैं ये
(यानी रसुलअल्‍लाह अलैहीस्‍सलाम) 
सुब्‍हान अल्‍लाह हुजूर कि सच्‍ची मुहब्‍बत और रब तआला कि रजा यही दिन-ए-इस्‍लाम का सच्‍चा खुलासा हैं और यही अकिदाह जो हुजूर अलैहीस्‍सलाम, सहाबा, अ‍हलेबैत, ताबईन, आईम्‍मा, औलीया, उल्‍मा और अल्‍लाह के नेक व महबुब बंदो का हैं आला हजरत ने पेश किया, जिसे अहलेसुन्‍नत वल-जमाअत कहते हैं (और आज कल कुछ लोगों ने अवाम को गुमराह करनें के लिए खुद को अहलेसुन्‍नत कहते हैं इस लिए जरूरी हैं के अहलेसुन्‍नत कि सही शनाख्‍त व पहचान के लिए बरेलवी या मस्‍लक-ए-आलाहजरत इस्‍तेमाल किया जाए) 
: पैदाइश :
आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ की पैदाइश 10, शव्वालुल्मुकर्रम (ईदुल्फ़ित्र) 1272, हिजरी मुताबिक़ 14, जून 1856, ईसवी हफते के दिन बरेली शहर के मुहल्ला जसोली में हुई। बचपन ही से आपकी पेशानी पर नूर की किरनें चमक रहीं थीं जिसे अहल-ए-नज़र ने देखा और यह निशानदिही करी कि यह बच्चा इल्मो फ़ज़्ल का आफ़ताब बनकर चमकेगा। 
: तालीम :
आलाहज़रत ने तालीम हासिल करने के लिए किसी मदरसे में दाखिला नहीं लिया बल्कि आपने तमाम उलूम अपने वालिद हज़रत मौलाना नक़ी अली खाँ से हासिल किए, आपने तकरीबन 55 से ज़्यादा उलूमों पर महारत हासिल की और एक हज़ार से ज़्यादा किताबें लिख़ीं । आपने तक़रीबन 54, साल फ़तवा लिखने की अज़ीम खिदमात अन्जाम दी, आपके फ़तवों की किताब का नाम ‘‘ अल अतायन नबविया फ़िल फ़ताव-ए-रज़विया ’’ है, आपने जहाँ दीनी व मज़हबी किताबे इस क़ौम को इनायत फ़रमाईं वहीं आपने साइन्स वग़ैरह पर भी किताबे लिखीं, इल्मे रियाज़ी (गणित) में आपकी महारत का अन्दाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि डा. ज़िय उद दीन वाइस चाँसलर अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी एक बार गणित के किसी सवाल में उलझ गए, हज़ार कोशिशों के बावुजूद वह सवाल हल न हो सका तो इसके लिए उन्होंने जर्मनी जाने का इरादह किया लेकिन उनके दोस्त मौलाना हशमतुल्लाह साहब ने इस बारे में उन्हें आलाहज़रत से मिलने को कहा दोस्त के कहने पर वह आलाहज़रत की बारगाह में हाज़िर हुए और वह सवाल रखा, आलाहज़रत ने बहुत कम वक़्त में उस सवाल को हल कर दिया, यह देख कर डा. ज़िया उददीन हैरान रह गए और यह कहने लगे कि ‘‘ यह हस्ती तो ‘‘ नोबल प्राइज़ ’’ की मुस्तहिक़ है ’’। 
आप हर इल्म को र्क़ुआन व हदीस की रौशनी में परखते थे, अगर उसके मुताबिक होता तो क़ुबूल करते नही ंतो रद फ़रमाते थे। आपने पूरी ज़िन्दगी इश्के रसूल और सून्नते रसूल का चर्चा किया इसका सिला आपको सह मिला कि आज पूरी दुनिया में आपका और आपकी खि़दमात का चर्चा हो रहा है, आपने वह अज़ीम काम अन्जाम दिए जिसको दुनिया कभी फ़रामोश नहीं कर सकती। 
: ग़रीबों की मदद :
आप हमेश ग़रीबों की मदद किया करते थे, आपके दर से कोई भिकारी ख़ाली नहीं जाता था, बेवा औरतों की मदद के लिए और ज़रूरत मन्दों की हाजत पूरी करने के लिए आपकी जानिब से माहाना वज़ीफ़े मुक़र्र थे, सर्दियों में आप रज़ाइयाँ तयार करवाकर बंटवाया करते थे। 
: समाज में सुधार :
आलाहज़रत फ़ाज़िले बरेलवी की एकहैसियत समाज सेवी की भी थी, ऐसे वक़्त में जब मुस्लिम मुअ़ाशरह मज़हबी बिगाढ़ से दो चार था, ऐसे दौर में फ़ाज़िले बरेलवी न न सिर्फ यह कि समाज की ख़राबियों को महसूस किया, बल्कि एक समाज सेवी के तौर पर आपने उन ख़राबियों को दूर किया। 
: हज :
आपने अपनी ज़िन्दगी में दो मर्तबा हज फ़रमाया, पहली बार 1878 ईसवी में अपने वालिद माजिद के साथ हज को तशरीफ़ ले गए, और दूसरी मर्तबा 1905 ईसवी में फ़रमाया, इस मौक़े पर वहाँ बड़े बड़े उलमा ने आपकी बेहद इज़्ज़त फ़रमाई। 
: विसाल :
आला हज़रत का विसाल 25, सफ़र 1340, हिजरी मुताबिक़ 28, अक्तूबर 1921, ईसवी को जुमे के दिन 2, बजकर 38, मिनट पर हुई। आपकी नमाज़े जनाज़ा आपके बड़े बेटे हज़रत मौलाना हामिद रज़ा खाँ साहब ने पढ़ाई।

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