Wednesday, May 1, 2019

डॉक्टर नासिर अमरोहवी साहब की एक बेहतरीन ग़ज़ल

غزل/ग़ज़ल

الگ دکھتا ہے وہ گل فام گل اندام لوگوں میں
ہے اس کے حسن کا چرچہ ہی صبح و شام لوگوں میں

अलग दिखता है वो गुलफ़ाम गुल अन्दाम लोगों में
है उस के हुस्न का चर्चा ही सुब्ह ओ शाम लोगों में

فریبِ ذات کی کوشش سدا ناکام  ہی ٹھہری
ترا چہرا بہت ڈھونڈا ترے ہم نام لوگوں میں

फ़रेब ए ज़ात की कोशिश सदा नाकाम ही ठहरी
तिरा चेहरा बोहत ढूँढा तिरे हम नाम लोगों में

پلٹ کر آ گئے ہیں کوچہ جاناں سے نا دیدہ
ہمارا نام بھی لکھ لیجیے ناکام لوگوں میں

पलट कर आ गए हैं कूचा ए जानां से ना दीदा
हमारा नाम भी लिख लीजिए नाकाम लोगों में

مورخ مجھ سے ذاتی طور پر ناراض تھا سو پھر
مجھے تاریخ میں لکّھا گیا گم نام لوگوں میں

मुअर्रिख़ मुझ से ज़ाती तौर पर नाराज़ था सो फिर
मुझे तारीख़ में लिक्खा गया गुम नाम लोगों में

میں ناحق کی حمایت بھول کر بھی کر نہیں سکتا
یہ وصفِ خاص ہے، ملتا نہیں ہے عام لوگوں میں

मैं ना हक़ की हिमायत भूल कर भी कर नहीं सकता
ये वस्फ़ ए ख़ास है, मिलता नहीं है आम लोगों में

डॉ० नासिर अमरोहवी/ ڈاکٹر ناصر امروہوی

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