बरेली। दरगाह आला हज़रत को पूरी दुनिया में मरकज़े अहले सुन्नत के नाम से जाना जाता है। यहां की दुनियाभर में जो पहचान बनी है वो यहां से जारी होने वाले फ़तवों की वजह से। यहां के फ़तवे का पूरी दुनिया के सुन्नियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम के मुफ़्ती और टीटीएस के राष्ट्रीय महासचिव मुफ़्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने बताया कि पूरी दुनिया के सुन्नी जब तक मरकज़े अहले सुन्नत बरेली शरीफ़ का फ़तवा नहीं देख लेते उस वक़्त तक वह किसी और जगह के फ़तवे को नहीं मानते।
जब हिल गई थी इंदिरा गांधी की हुकूमत
अब तक यहां से सैकड़ों ऐसे फ़तवे जारी हुए हैं कि जिसको हुकूमत-ए-हिन्द को भी मानना पड़ा है। इमरजेंसी के दौर में नसबंदी के खि़लाफ़ जारी होने वाले यहां के फ़तवे से इंदिरा गांधी की हुकूमत तक हिल गई थी। ख़ानदान-ए-आला हज़रत के फ़तवा विभाग की स्थापना आला हज़रत के दादा स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी हज़रत मुफ़्ती रज़ा अली खां अलैहिर्रहमा ने 1831 ईसवीं में की थी। उनके बाद इस काम को उनके बेटे और आला हज़रत के वालिद (पिता) हज़रत अल्लामा नक़ी अली खां अलैहिर्रहमा ने 1840 से 1870 तक इसे संभाला।
आला हजरत ने जारी किए लाखों फ़तवे
इस फ़तवा विभाग को पूरी दुनिया में जो ख्याति प्राप्त हुई वह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमा के फ़तवों से मिली। इन्होंने 13 वर्ष की उम्र से फ़तवा देना शुरु किया। सन 1869 से सन 1921 तक इमाम अहमद रज़ा खां बराबर फ़तवे देते रहे। इन्होंने अपनी पूरी जि़ंदगी में लाखों फ़तवे जारी किये जिनमें कई फ़तवे तो सैकड़ों पेजों पर आधारित हैं। इनके जारी कर्दा फ़तवों का संग्रह ‘फ़तावा रज़विया’ के नाम से दुनिया के कई मुल्कों से प्रकाशित किया जा चुका है। इस किताब के 30 भाग हैं और प्रत्येक भाग लगभग 400 से 500 पृष्ठों पर आधारित है। प्रत्येक पेज ए-4 साइज़ का है। कई फ़तवे तो इसमें आधुनिक तकनीक पर आधारित हैं जैसे नोट जब कागज़ का छपने लगा तो करेंसी नोट पर इन्होंने सबसे पहले फ़तवा जारी किया जिसे देखकर पूरी दुनिया के आलिम और मुफ़्ती हैरत में पड़ गये।
आला हज़रत के बाद बड़े बेटे ने संभाली जिम्मेदारी
आला हज़रत के बाद फ़तवा विभाग की यह जि़म्मेदारी इनके बड़े बेटे हज़रत मुफ़्ती मोहम्मद हामिद रज़ा खां अलैहिर्रहमा ने संभाली जिनका फ़तवा देने का कार्यकाल 1895 से 1942 तक रहा क्योंकि इन्होंने फ़तवा देने की जि़म्मेदारी अपने वालिद आलाहज़रत के कार्यकाल ही से प्रारम्भ कर दी थी। इसी तरह आला हज़रत के छोटे शहज़ादे हज़रत मुफ़्ती-ए-आज़म हिन्द भी आला हज़रत के कार्यकाल में फ़तवा देते थे और यह कार्यकाल उनका 1981 तक रहा।
हर रोज जारी होते हैं दर्जनों फ़तवे
मुफ़्ती आजम-ए-हिन्द के कार्यकाल में आलाहज़रत के पोते हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मुफ़्ती इब्राहीम रज़ा खां और रेहान-ए-मिल्लत हज़रत मौलाना रेहान रज़ा खां भी दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम से फ़तवा देते थे। मुफ़स्सिरे आज़म का कार्यकाल 1943 से 1965 और हज़रत रेहान-ए-मिल्लत का 1965 से 1985 तक रहा और अब मंज़रे इस्लाम के दारुल इफ़्ता से हज़रत सुब्हानी मियां की सरपरस्ती में फ़तवे जारी किये जाते हैं। दूसरी तरफ़ ताजुश्शरिअ़ा हज़रत मुफ़्ती अख़्तर रज़ा अज़हरी मियां ने 1982 में मरकज़ी दारुल इफ़्ता की स्थापना की। जहां से रोज़ाना कई दर्जन फ़तवे जारी किये जाते हैं। इस तरह मरकज़े अहले सुन्नत में आला हज़रत का दारुल इफ़्ता दो हिस्सों पर आधारित है। एक दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियां की सरपरस्ती में जो दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम के नाम से है और दूसरा मरकज़ी दारुल इफ़्ता जो हज़रत अज़हरी मियां की सरपरस्ती में है। दोनों ही जगह से जारी होने वाले फ़तवों का पूरी दुनिया के सुन्नियों में एक विशेष महत्व है।
ऑनलाइन भी जारी होते हैं फ़तवे
दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम के मुफ़्ती और टीटीएस के राष्ट्रीय महासचिव मुफ़्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने बताया कि समय की ज़रुरतों और आधुनिक युग को देखते हुए दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियां साहब ने ऑनलाइन फ़तवे जारी करने का भी विशेष प्रबंध किया है ताकि दूर दराज़ के देशों और इलाक़ों में रहने वाले लोग आसानी से अपने शरई मसाइल का हल आसानी से प्राप्त कर सकें। इसकी सारी जि़म्मेदारियां आईटी से के प्रमुख मोहम्मद जुबैर रज़ा खां को सौंपी गयी हैं। मास्टर जुबैर रज़ा खां ने बताया कि ऑनलाइन फ़तवा दरगाह की अधिकारिक वेबसाइट www.aalahazrat.in और www.ala-hazrat.com या ईमेल daurliftabareilly@gmail.com पर अपना सवाल लिखकर हासिल कर सकते हैं।
जब हिल गई थी इंदिरा गांधी की हुकूमत
अब तक यहां से सैकड़ों ऐसे फ़तवे जारी हुए हैं कि जिसको हुकूमत-ए-हिन्द को भी मानना पड़ा है। इमरजेंसी के दौर में नसबंदी के खि़लाफ़ जारी होने वाले यहां के फ़तवे से इंदिरा गांधी की हुकूमत तक हिल गई थी। ख़ानदान-ए-आला हज़रत के फ़तवा विभाग की स्थापना आला हज़रत के दादा स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी हज़रत मुफ़्ती रज़ा अली खां अलैहिर्रहमा ने 1831 ईसवीं में की थी। उनके बाद इस काम को उनके बेटे और आला हज़रत के वालिद (पिता) हज़रत अल्लामा नक़ी अली खां अलैहिर्रहमा ने 1840 से 1870 तक इसे संभाला।
आला हजरत ने जारी किए लाखों फ़तवे
इस फ़तवा विभाग को पूरी दुनिया में जो ख्याति प्राप्त हुई वह आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमा के फ़तवों से मिली। इन्होंने 13 वर्ष की उम्र से फ़तवा देना शुरु किया। सन 1869 से सन 1921 तक इमाम अहमद रज़ा खां बराबर फ़तवे देते रहे। इन्होंने अपनी पूरी जि़ंदगी में लाखों फ़तवे जारी किये जिनमें कई फ़तवे तो सैकड़ों पेजों पर आधारित हैं। इनके जारी कर्दा फ़तवों का संग्रह ‘फ़तावा रज़विया’ के नाम से दुनिया के कई मुल्कों से प्रकाशित किया जा चुका है। इस किताब के 30 भाग हैं और प्रत्येक भाग लगभग 400 से 500 पृष्ठों पर आधारित है। प्रत्येक पेज ए-4 साइज़ का है। कई फ़तवे तो इसमें आधुनिक तकनीक पर आधारित हैं जैसे नोट जब कागज़ का छपने लगा तो करेंसी नोट पर इन्होंने सबसे पहले फ़तवा जारी किया जिसे देखकर पूरी दुनिया के आलिम और मुफ़्ती हैरत में पड़ गये।
आला हज़रत के बाद बड़े बेटे ने संभाली जिम्मेदारी
आला हज़रत के बाद फ़तवा विभाग की यह जि़म्मेदारी इनके बड़े बेटे हज़रत मुफ़्ती मोहम्मद हामिद रज़ा खां अलैहिर्रहमा ने संभाली जिनका फ़तवा देने का कार्यकाल 1895 से 1942 तक रहा क्योंकि इन्होंने फ़तवा देने की जि़म्मेदारी अपने वालिद आलाहज़रत के कार्यकाल ही से प्रारम्भ कर दी थी। इसी तरह आला हज़रत के छोटे शहज़ादे हज़रत मुफ़्ती-ए-आज़म हिन्द भी आला हज़रत के कार्यकाल में फ़तवा देते थे और यह कार्यकाल उनका 1981 तक रहा।
हर रोज जारी होते हैं दर्जनों फ़तवे
मुफ़्ती आजम-ए-हिन्द के कार्यकाल में आलाहज़रत के पोते हज़रत मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मुफ़्ती इब्राहीम रज़ा खां और रेहान-ए-मिल्लत हज़रत मौलाना रेहान रज़ा खां भी दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम से फ़तवा देते थे। मुफ़स्सिरे आज़म का कार्यकाल 1943 से 1965 और हज़रत रेहान-ए-मिल्लत का 1965 से 1985 तक रहा और अब मंज़रे इस्लाम के दारुल इफ़्ता से हज़रत सुब्हानी मियां की सरपरस्ती में फ़तवे जारी किये जाते हैं। दूसरी तरफ़ ताजुश्शरिअ़ा हज़रत मुफ़्ती अख़्तर रज़ा अज़हरी मियां ने 1982 में मरकज़ी दारुल इफ़्ता की स्थापना की। जहां से रोज़ाना कई दर्जन फ़तवे जारी किये जाते हैं। इस तरह मरकज़े अहले सुन्नत में आला हज़रत का दारुल इफ़्ता दो हिस्सों पर आधारित है। एक दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियां की सरपरस्ती में जो दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम के नाम से है और दूसरा मरकज़ी दारुल इफ़्ता जो हज़रत अज़हरी मियां की सरपरस्ती में है। दोनों ही जगह से जारी होने वाले फ़तवों का पूरी दुनिया के सुन्नियों में एक विशेष महत्व है।
ऑनलाइन भी जारी होते हैं फ़तवे
दारुल इफ़्ता मंज़रे इस्लाम के मुफ़्ती और टीटीएस के राष्ट्रीय महासचिव मुफ़्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने बताया कि समय की ज़रुरतों और आधुनिक युग को देखते हुए दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियां साहब ने ऑनलाइन फ़तवे जारी करने का भी विशेष प्रबंध किया है ताकि दूर दराज़ के देशों और इलाक़ों में रहने वाले लोग आसानी से अपने शरई मसाइल का हल आसानी से प्राप्त कर सकें। इसकी सारी जि़म्मेदारियां आईटी से के प्रमुख मोहम्मद जुबैर रज़ा खां को सौंपी गयी हैं। मास्टर जुबैर रज़ा खां ने बताया कि ऑनलाइन फ़तवा दरगाह की अधिकारिक वेबसाइट www.aalahazrat.in और www.ala-hazrat.com या ईमेल daurliftabareilly@gmail.com पर अपना सवाल लिखकर हासिल कर सकते हैं।
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