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ग़ज़ल-रहमान फ़ारिस, नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है
नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है सौ पेश-ए-यार निगाहें झुकाना बनता है वो लाख बे-ख़बर-ओ-बे-वफ़ा सही लेकिन त...
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पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊ...
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Tera chup rahna mere ze han mai kya baith gya. Itni aawaze tujhe di ke gala baith gya. Yun Nhai hai Ke Faqat Mai Hi use chahata huu....
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आला हजरत तहरीर फरमातें हैं… उन्हें जाना, उन्हें माना, न रखा गैर से काम लिल्लाह हील-हम्द मैं दुनिया से मुसलमान गया ला-वरब्बील अर...

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