Friday, January 18, 2019

नात-ऐ सब्ज़ गुम्बद वाले मंज़ूर दुआ करना..

Ae sabz gumbad wale manzoor dua karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Ae Noor e Khuda aakar ankhoon mein sama jana
Ya dar pe bula lena ya khawab main aa jana
Ae parda nasheen dil ke parde mein raha kerna
Jab waqt e nazah aye deedar aata karna
Aie sabz gumbad walay manzoor dua karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Main qabr andheri mein ghabraoon ga jab tanha
Imdaad meri karnay aajana meray aaqa
Roshan meri turbath ko aie noor e Khuda kerna
Jab waqt e nazah aaye deedar ataa karna
Ae sabz gumbad wale manzoor dua karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Mujrim hoon jahaan bhar ka mehshar mein bharam rakhna
Rusva e zamana houn daman mein chupa lena
Maqbool yeh aarz meri lillah zara kerna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Aie sabz gumbad walay manzoor dua karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Chehre se ziya payee in chand sitaaron nay
Us dar say shifa paaye dukh dard kay maaron ne
Aataa hai unhein sabir har dukh ki dawa karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Ae sabz gumbad wale manzoor dua karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Mehboob Ilaahi sa koyi na haseen dekha
Ye shaan hi inki ke saaya bhi nahin dekha
Allah nay saaye ko chaha na judah karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna
Ae sabz gumbad wale manzoor dua karna
Jab waqt e nazah aye deedar ataa karna



परवीन शाक़िर की ग़ज़ल-इक हुनर था

इक हुनर था कमाल था क्या था
परवीन शाकिर
इक हुनर था कमाल था क्या था

मुझ में तेरा जमाल था क्या था

तेरे जाने पे अब के कुछ न कहा

दिल में डर था मलाल था क्या था

बर्क़ ने मुझ को कर दिया रौशन

तेरा अक्स-ए-जलाल था क्या था

हम तक आया तू बहर-ए-लुत्फ़-ओ-करम

तेरा वक़्त-ए-ज़वाल था क्या था

जिस ने तह से मुझे उछाल दिया

डूबने का ख़याल था क्या था

जिस पे दिल सारे अहद भूल गया

भूलने का सवाल था क्या था

तितलियाँ थे हम और क़ज़ा के पास

सुर्ख़ फूलों का जाल था क्या था

बशीर बद्र साहब की मशहूर ग़ज़ल -दस्तूर

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया

काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के

दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए

लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना!

आईना बात करने पे मजबूर हो गया

दादी से कहना उस की कहानी सुनाइए

जो बादशाह इश्क़ में मज़दूर हो गया

सुब्ह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल

वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया

कुछ फल ज़रूर आएँगे रोटी के पेड़ में

जिस दिन मिरा मुतालबा मंज़ूर हो गया

बशीर बद्र की मशहूर ग़ज़ल-तलाश

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा

Monday, January 7, 2019

एक और दरिंदगी.....

हैवानियत की इंतहा..

 बहुत ही दर्दनाक और शर्मनाक हादसा
एक बच्ची शेहरिन D/O उम्मेद अली उम्र आठ साल . निवासी मुरादपुर थाना सिम्भौली जनपद हापुड़ उत्तर प्रदेश जो दो दिनों से गायब थी. आज सुबह बच्ची की लाश एक ईख के खेत में मिली जो देखने से लगता हैं इस बच्ची के साथ गेंग रेप हुआ हैं. और उसके बाद बच्ची को क़त्ल कर दिया गया..

 #जस्टिस4शेहरिन

Sunday, January 6, 2019

ताहिर फ़राज़ की सबसे मशहूर ग़ज़ल-जो शजर बे-लिबास रहते हैं

जो शजर बे-लिबास रहते हैं
उन के साए उदास रहते हैं
चंद लम्हात की ख़ुशी के लिए
लोग बरसों उदास रहते हैं
इत्तिफ़ाक़न जो हँस लिए थे कभी
इंतिक़ामन उदास रहते हैं
मेरी पलकें हैं और अश्क तिरे
पेड़ दरिया के पास रहते हैं
उन के बारे में सोचिए 'ताहिर'
जो मुसलसल उदास रहते हैं

सबसे मशहूर ग़ज़ल-बहुत ख़ूबसूरत हो तुम

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
कभी मैं जो कह दूँ मोहब्बत है तुम से
तो मुझ को ख़ुदा रा ग़लत मत समझना
कि मेरी ज़रूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
हैं फूलों की डाली पे बाँहें तुम्हारी
हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी
जो काँटे हूँ सब अपने दामन में रख लूँ
सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना
किसी और से देखो दिल मत लगाना
कि मेरी अमानत हो तुम
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा
है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा
और इस पर ये काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है
बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल
फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल
वो पाकीज़ा मूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर
शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के
छुपाना जो चाहें छुपाई जाए
भुलाना जो चाहें भुलाई जाए
वो पहली मोहब्बत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम

ग़ज़ल-रहमान फ़ारिस, नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है

नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है सौ पेश-ए-यार निगाहें झुकाना बनता है वो लाख बे-ख़बर-ओ-बे-वफ़ा सही लेकिन त...